सोमवार, मार्च 21, 2011

बेचारा


आँख के अंधे और चश्मे का रिश्ता बड़ा अजीब होता है ! जब मेरे मास्टरजी को चश्मे के बिना चोर का मोर दिखाई देता है तब राजनीति में तो बिना चश्मे के लोकतंत्र को नोटतंत्र समझने वालों से तो मुझे कोई दिक्कत नहीं होती ! मेरे वक्त में चोरों का सरदार पाकसाफ था................बहुत बड़ी कहानी है वो भूल में लघुकथा कह गये थे.

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