शनिवार, मार्च 19, 2011

शनि की दशा



मुकुल स्टेशन से बाहर निकलकर रिक्शा लेने की सोच रहा था कि अचानक पीछे से एक ज्योतिषी ने हाथ पकड़ लिया। मुकुल दिल्ली पहली बार आया था, इसलिए पहले से ही डर रहा था कि पता नहीं वहां कैसे लोग हो। जब तक खुद को सम्भाल पाता, ज्योतिषी बोला, ‘बेटा ! तेरे पर तो शनि की दशा है, जीवन में कभी सफल नहीं हो पायेगा।’
मुकुल का भविष्य दृष्ठओं में कोई विश्वास नहीं था, वो हर सफलता के पीछे मेहनत को महत्वपूर्ण मानता था। इसीलिय गांव का पहला छात्र है जो इंजनीयरिंग करने दिल्ली आया है। मगर ज्योतिषी से पीछा छुड़ाने के लिये बोला, ‘बाबा, शनि की दशा उतारने का कोई तरिका भी है क्या ?’
बाबा तो सुबह से लेकर शाम तक इसी फिराक में रहतें हैं कि कोई आये जिसकी शनि की दशा उतार कर खुद के भविष्य के लिये भोजन की व्यवस्था करें क्योंकि जीवन में मेहनत से नाता जो तोड़ लिया है। इसी फिराक में था, ‘तुम्हारी जेब में 500 रू हैं तो उतार दूंगा।’ मुकुल वैसे इन बाबाओं के चरित्र से वाकिफ था कि ये चाहे दिल्ली की सड़क पर खड़े हो या फिर रामगढ़ की सड.क पर, उनका मानसिक स्तर एक ही होता है।
‘नहीं’ उसने सपाट सा जवाब दे दिया।
‘कोई बात नहीं बेटा, हम शनि महाराज को राजी कर लेंगे, 100 रू दे दो’ बाबा वार खाली नहीं जाने देना चाहता था।
‘नहीं है बाबा मेरे पास’ मुकुल बाबा की असली मंशा समझ गया था।
‘50 रू तो होंगे, वो दे दो’, अब बाबा अपनी औकात में आ गया था।
‘ नहीं है बाबा। मैं गांव से आया हूं, घरवालों ने सिर्फ किराया दिया जो रास्ते में लग गया’, मुकुल को अब आत्मविश्वास हो गया था।
बाबा एक आदमी के पास इतना समय बर्बाद नहीं करना चाहता था बोला, ‘कितने पैसे हैं तुम्हारे पास ?’
‘ 5 रू हैं बाबा’, मुकुल को मन ही मन में हंसी आ रही थी।
ज्योतिषी ने झटके से मुकुल का हाथ छोड़कर कहा, ‘जा बेटा ! तेरा शनि भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता।’

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