बुधवार, मार्च 30, 2011

जीत


टमाटर : भारत मैच जीत गया और लोग ख़ुशी से झूम रहे है, तुम उदास क्यूँ हो आलू .
आलू : मेरा सब कुछ लुट गया भाई.
टमाटर : क्या हुआ, पाकिस्तानी समर्थक हो क्या ?
आलू : अबे गधे, मेरे घर में टीवी नहीं है, पडौस में मैच देख रहा था और चोर घर साफ़ कर गये.

सोमवार, मार्च 28, 2011

मैच


चेला : गुरूजी, इस बार हिंदुस्तान पाकिस्तान के मैच में कौन जीतेगा ?
गुरूजी : कोई नहीं जीतेगा.
चेला : क्यूँ ?
गुरूजी : क्यूंकि हम इस बार कोई फैसला नहीं देने जा रहे है और हमारे फैसले के बिना कोई जीत हार नहीं सकता.
चेला : आपकी माया अपरम्पार है , आप तो गुरूजी अमरीका जैसे लगते है, ...............

बुधवार, मार्च 23, 2011

कसूरवार


''कितना कसूरवार इंसान हूँ, रोज़ एक नया झूठ बोलता हूँ."
"नहीं यार, तुम से ज्यादा कसूरवार तो वो हैं."
"कौन ?"
"जो पिछले 60 सालों से एक ही झूठ बार बार बोल रहें है."
"क्या झूठ है ?"
" ये कि विकास .............................

सोमवार, मार्च 21, 2011

बेचारा


आँख के अंधे और चश्मे का रिश्ता बड़ा अजीब होता है ! जब मेरे मास्टरजी को चश्मे के बिना चोर का मोर दिखाई देता है तब राजनीति में तो बिना चश्मे के लोकतंत्र को नोटतंत्र समझने वालों से तो मुझे कोई दिक्कत नहीं होती ! मेरे वक्त में चोरों का सरदार पाकसाफ था................बहुत बड़ी कहानी है वो भूल में लघुकथा कह गये थे.

शनिवार, मार्च 19, 2011

गांव का घोड़ा


घोड़ा गांव से पहली बार बाहर निकला था। बस में सवार होते ही उसने पैसों का हिसाब लगाना शुरू कर दिया था जो कि तीन जेबों में अलग-अलग रखे हुये थे। क्योंकि उसने सुन- रखा था कि शहर आदमी को लूट लेता है। करीब 17 साल की उम्र थी, जिसमें इतना ही समझ में आया कि लूट का मतलब पैसे को लूटना होता है। असली नाम कागजो मे ‘उदय’ लिखा हुआ था मगर बचपन से लोग उसे ‘घोड़ा’ नाम से ही जानते थे। मां-बाप से झगड़कर वह गांव से शहर रवाना हुआ। दिल मे सारे जहां जीतने की तमन्ना थी। जब बस रुकी तो उसे मालूम नहीं था कि कौन सी जगह आ गयी है मगर चारों ओर की चकाचौंध देखकर लगा कि शायद शहर आ गया है, यही सोचकर बस से उतर गया एक अजनबी दुनियां में जहां के लोग, वातावरण, मिनारें सब अजीब दिख रहे थे।
एक होटल के सामने जाकर रुका। ‘अबे हट यहां से, गधे कहीं के’, चष्मे वाले आदमी के हाथ मे काला बैग था।
गधे! सुनते ही उसे अजीब लगा क्योंकि गांव में तो लोग उसे घोड़ा कहते थे और वह खुद को घोड़े जितना ताकतवर मानता भी था। तुरन्त वहां से दौड़ा और एक होटल के सामने जाकर रुका। मिठाईयों की खुश्बू से दिल मचल रहा था। मिठाईयों के काउंटर के पास टकटकी लगाकर देख रहा था कि मालिक ने फटकार लगाई ‘ऐ! कुते की तरह क्या घुर रहा है, लेना है तो लो वरना अपना रस्ता नापो।
कुता! नहीं, मैं तो घोड़ा हूँ। एक से नजर अपने टांगों की देखा तो सचमुच घोड़े जैसी नजर आयी, दौड़ने लगा।
सामने चैराहे पर पुलिस वाला खड़ा था देखकर कहा, ‘अबे ओ! बन्दर की तरह क्या दौड़ रहा, देखकर ठीक से नहीं चला जाता।’ बंदर! नहीं, मैं तो घोड़ा हूँ। अपने हाथों कि तरफ देखा तो घोड़े की टांग नजर आये।
फिर दौड़ना शुरू कर दिया कि अचानक सामने कार आ गयी, कार वाले ने ब्रके लबाकर बोला, ‘ऐ! मच्छर की औलाद मरना है तो लेट जा।’ मच्छर! नहीं, मैं तो घोड़ा हूँ।
अब उसे पूरा यकीन हो गया था कि उसकी सही पहचान गांव वाले ही करते है। हिनहिनाकर दौड़ता हुआ गांव का रास्ता पकड़ लिया।

शनि की दशा



मुकुल स्टेशन से बाहर निकलकर रिक्शा लेने की सोच रहा था कि अचानक पीछे से एक ज्योतिषी ने हाथ पकड़ लिया। मुकुल दिल्ली पहली बार आया था, इसलिए पहले से ही डर रहा था कि पता नहीं वहां कैसे लोग हो। जब तक खुद को सम्भाल पाता, ज्योतिषी बोला, ‘बेटा ! तेरे पर तो शनि की दशा है, जीवन में कभी सफल नहीं हो पायेगा।’
मुकुल का भविष्य दृष्ठओं में कोई विश्वास नहीं था, वो हर सफलता के पीछे मेहनत को महत्वपूर्ण मानता था। इसीलिय गांव का पहला छात्र है जो इंजनीयरिंग करने दिल्ली आया है। मगर ज्योतिषी से पीछा छुड़ाने के लिये बोला, ‘बाबा, शनि की दशा उतारने का कोई तरिका भी है क्या ?’
बाबा तो सुबह से लेकर शाम तक इसी फिराक में रहतें हैं कि कोई आये जिसकी शनि की दशा उतार कर खुद के भविष्य के लिये भोजन की व्यवस्था करें क्योंकि जीवन में मेहनत से नाता जो तोड़ लिया है। इसी फिराक में था, ‘तुम्हारी जेब में 500 रू हैं तो उतार दूंगा।’ मुकुल वैसे इन बाबाओं के चरित्र से वाकिफ था कि ये चाहे दिल्ली की सड़क पर खड़े हो या फिर रामगढ़ की सड.क पर, उनका मानसिक स्तर एक ही होता है।
‘नहीं’ उसने सपाट सा जवाब दे दिया।
‘कोई बात नहीं बेटा, हम शनि महाराज को राजी कर लेंगे, 100 रू दे दो’ बाबा वार खाली नहीं जाने देना चाहता था।
‘नहीं है बाबा मेरे पास’ मुकुल बाबा की असली मंशा समझ गया था।
‘50 रू तो होंगे, वो दे दो’, अब बाबा अपनी औकात में आ गया था।
‘ नहीं है बाबा। मैं गांव से आया हूं, घरवालों ने सिर्फ किराया दिया जो रास्ते में लग गया’, मुकुल को अब आत्मविश्वास हो गया था।
बाबा एक आदमी के पास इतना समय बर्बाद नहीं करना चाहता था बोला, ‘कितने पैसे हैं तुम्हारे पास ?’
‘ 5 रू हैं बाबा’, मुकुल को मन ही मन में हंसी आ रही थी।
ज्योतिषी ने झटके से मुकुल का हाथ छोड़कर कहा, ‘जा बेटा ! तेरा शनि भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता।’