शुक्रवार, मार्च 09, 2012

नुक्ता

बड़ के पीछे वाले हिस्से की तरफ जो एक पुराना सा राजाशाही महल दिख
रहा है उसके सामने बोर्ड पर ‘तहसील कार्यालय लिखा हुआ है। 1947 के
बाद कहा जाता है कि एक भारत नाम का देश आजाद हुआ था और उसी
का प्रशासन चलाने के लिये उस देश में जनता के कई सेवक ऐसे कार्यालयों
में जनसेवा का कार्य वर्णव्यवस्था के आधार पर करते है। कार्यालय के अंदर
घुसते ही बांयी और एक कमरा था जिस पर एक काली प्लैट पर
‘तहसीलदार’ लिखकर लटकाई गई थी। इस तहसीलदार शब्द का अर्थ
वर्तमान परिपेक्ष्य में गांव में उन नोटों से लगाया जाता है जिसको भारत
सरकार की मान्यता प्राप्त है। कमरे के अंदर एक कुर्सी रखी हुई थी जो
रजवाड़ो के राजसिंहासन से तुलनात्मक रूप से किसी भी स्तर पर कम नहीं
थी मगर कुर्सी का एक टूटा हुआ हत्था बता रहा था कि अब राजतंत्र की
जगह लोकतंत्र नाम की चिडि़या ने ले ली है जो एक टूटे हुए पंख के
बावजूद भी उड़ने की कोशिश कर रही है। दिवार पर लटकी हुई गांधी जी
की तस्वीर गर्द के कारण धुंधली हो गई थी और लग रहा था कि गांधी जी
का बदन अब नंगा नही रहा है।
पिछले दो तीन साल से इस इलाके में एक बहुत बड़ा परिवर्तन देखने को
मिला है। जितने भी सरकारी महकमें थे उनमें एक विशेष मौसम आया
जिसके कारण तबादलों के द्वारा यहां पर शर्मा जी, मिश्रा जी, त्रिपाठी जी,
पांडेय जी आदी लोगों की भरमार हो गई है। इस मौसम का एक खास
कारण लोग बताते हैं कि यहां के विधायक जोशी जी हैं जिनकी पहुंच मौसम
विभाग से लेकर मुख्यमंत्री के घर पूजा पाठ कराने तक है। इसी मौसमी
हलचल के दौरान तहसीलदार मनोहर चोटिया का तबादला इस शहर में हुआ
है। इनकी चोटी घोड़ी के पूंछ से भी लम्बी है जिनके कारण ब्राह्मण इन्हें
बुद्धिमान मानते हैं जो किसी भी वैज्ञानिक सिद्धान्त के सामने पल भर टिकने
की औकात नहीं रखता मगर चल रहा अमरीया राजनीति की तरह।
मनोहर जोशी का दैनिक क्रियाकर्म बड़े ही सुव्यवस्थित थे, अगर कोई कुए के
बीच में लटक जाये और रस्सी टूटने वाली हो तो भी वो पूजा पाठ से नहीं
उठेंगे। माथे पर तीन तिलक लगाकर जब जोशी जी रिश्वत बटोरते है तो
चेले चपाटे उनकी मानसरोवर की यात्रा का प्लान और बजट बखानते रहते
हैं। मनोहर जोशी आजकल बहुत उदास रहते है जिसकी वजह उनका दोस्त
घनश्याम है। वैसे तो घनश्याम को हुआ कुछ भी नही है वो एकदम तंदरूस्त
है। गांव में पूजा पाठ का धंधा ठीकठाक चल रहा है, हर दिन कोई काम
धाम मिल जाता, जिससे उनके घर की गाड़ी बिना तेल के गुड़ जाती है।
दरअसल जोशी जी की बिमारी यह थी कि घनश्याम का इकलौता लड़का
पंकज इस बार तीसरी बार मैट्रिक की परीक्षा दी और उसमें पास हो गया।
अब इस वाकयात में न तो पंकज की गलती थी और न ही घनश्याम की।
असल समस्या यह थी कि सोनियोग्राफी की मशीन ने उस इलाके में
लड़कियों की पैदाइश पर पाबंदी लगा दी थी और इसी कारण लिंग
असंतुलन इतना बढ़ गया था कि खुद घनश्याम के गांव में 117 जवान
लड़कों का टोला कुते मारता घूमता है। पंकज की शादी करने के लिये भी
घनश्याम ने तमाम रिश्तेदारों और घर वालों को खंखाल लिया, लेकिन जब
कहीं भी मामला सेट नहीं हुआ तो मनोहर जोशी के सर पर डाल दिया।
घनश्याम- ‘अब आप ही कुछ कर सकते है, आपकी भाभी तो इसी चिंता में
मरी जा रही है।’
अब सवाल भाभी का आया तो अपनी चोटी की गांठ
खोलकर जोशी जी बोले, ‘जब तक तेरे बेटे के हाथ पीले नहीं करवा देता
तब तक इस चोटी को खुली की खुली।’
एक वो दिन था जब से जोशी जी का हाजमा इतना खराब हो गया कि हर
सुबह पूजा के बाद वे भगवान से एक लड़की मांगते (अपने लिये नहीं पंकज
के लिये)। अफसोस की बात है कि 3 महिने तक भगवान ने जोशी की
दरख्वाहस्त पर कोई ध्यान नहीं दिया लेकिन जोशी को पूरा यकीन था कि
एक दिन जरूर कोई लड़की उसकी झोली में आयेगी और वो उसे सही
सलामत पंकज के हवाले कर देगा। मुझे पूरा याद की मई का महिना था,
शायद सुबह के 7.30 बजे होंगे जोशी जी जोश के साथ पूजा से उठे और
सीधे घनश्याम के घर गये। किसी को कुछ पता भी नहीं और जोशी जी की
झोली में वनज लगने लगा, जी हा! आज उन्हें एक नुक्ता मिल गया था।
तहसील कार्यालय में क्लर्क की एक पोस्ट कई दिनों से खाली पड़ी थी और
आज पूजा के दौरान जोशी को लगा कि उस पोस्ट पर पंकज को होना
चाहिए।
ले देकर एक ही दिक्कत थी कि वो पोस्ट सरकारी नियमों के
अनुसार वो पोस्ट रिजर्वेशन के अंडर आती थी और यहीं पर घनश्याम का
ब्राह्मण होना जोशी जी को बुरा लगा। उन्हें अपनी चोटी और बुद्धिमता पर
इतना भरोसा था कि वो कोई न कोई रस्ता जरूर निकाल लेंगे। फिर अगर
पंकज को नौकरी मिल जाये तो जोशी जी एक क्या पांच पांच शादी करवाव
देंगे। ‘कोई तो उपाय निकालना ही पडे़गा’ इसी बड़बड़ाहट के साथ जोशी
जी उपने चैम्बर से बरामदे में सात चक्कर लगा चुके थे। एक के बाद एक
आइडिया उनके दिमाग में आता और वो उन्हें तुरंत रिजेक्ट कर देते क्योंकि
आज उन्हें किसी धांसू आइडिया की जरूरत थी जो उस पोस्ट को पंकज को
दे सके। जब दिमाग की औजार पाती काम करना बंद कर दिया तो चैम्बर में
आकर कुर्सी पर आकर बैठ गये। चपरासी से पानी का गिलास मंगवाकर
पीया और ठंडे दिमाग से सोचने लगे। चपरासी के बाहर जाते ही उन्होनें एक
मोटी सी मा की गाली सरकार को दी जो सम्भवतः सरकार की आरक्षण
नीति पर एक बहुत बड़ा हमला थी।
‘सरकार’ इस शब्द का ख्याल आते ही जोशी जी ने सोचना शुरू कर दिया
कि आखिर सरकार को देखा किसने है? अब जोशी ने दूसरा नुक्ता भी पकड़
लिया था, तुरन्त चपरासी को बुला कर एक खाली जाति प्रमाण पत्र का फार्म
मंगवाया, बेचारा चपरासी दौड़ा दौड़ा गया और 5 रूपये का एक फार्म लेकर
आया।
जोशी जी चपरासी से बोले, ‘नाम और पते को छोड़कर सारा फार्म
भरवा लो और मेरा नाम लेकर बाबू जी से रजीस्टर में चढ़वाकर ले आओ।’
अब तहसीलदार का हुक्म हो तो बाबू साबू क्या औकात? तीन मिनट में बिना
नाम पते का वो जाति प्रमाण पत्र बनकर तैयार हो गया, मेरा मानना है कि
जिसे बनाना दुनियां का सबसे बोरिंग काम है।
चपरासी प्रमाण पत्र को तहसीलदार की टेबल पर रखकर चला गया क्योंकि
साहब गुस्सलखाने में कसरत कर रहे थे। जब बाहर आये, लाल रूमाल से
हाथ पौंछकर गांधी छाप चश्मे की नजर प्रमाण पत्र पर पड़ी तो जोशी जी को
ग्लानी तो बहुत हुई मगर पल भार बाद उन्हें अपनी बौद्विक जीत का
अहसास हुआ और नाम की जगह ‘पंकज पुत्र घनश्याम’ भरकर चोटी पर
हाथ फेरा और फिर 5 बजे तक का समय बहुत ही मुश्किल से गुजार जिसमें
उन्हें कई बार घनश्याम की बीवी की कई बार याद आयी।
हल्की हल्की हवा चल रही थी जिसकी रेत की रफ्तार बता रही थी कि वह
कभी भी आंधी का रूप ले सकती है। लेकिन आज आंधी तो क्या तुफान भी
जोशी जी को घनश्याम के घर जाने से नहीं रोक सकते थे क्योंकि वो पंकज
की नौकरी की खुश खबर देकर देकर भाभी के हाथ से लडडू खाना चाहता
था, जो उनकी सदीयों पुरानी इच्छा थी। जोशी जी तेज कदमों से घनश्याम
के घर पहंचे तो घर पर केवल तीन ही लोग थे मतलब कोई बाहर वाला
नहीं था।
‘‘ नमस्ते, भाभी जी’’। अदांज ही खुशनुमा था
‘‘नमस्ते।’’ देवकी वैसे भी जोशी से ज्यादा बात नहीं करती थी क्योंकि उसने
सुन रखा था कि पत्नि के तलाक देने के बाद जोशी जी इधर-उधर हाथ
मार लिया करते है।
घनश्याम अन्दर से कुर्सी ले आया ‘‘बैठीये जी।’’
कुर्सी पर बैठकर जोशी जी कुछ देर चुप रहं फिर बोले ‘‘ आज भाभी जी
उदास-उदास क्यों हैं।
देवकी की बजाय जवाब घनश्याम ने दिया,, ’’ अब
क्या बताये पंकज की शादी को लेकर चिंतन रहती है किसी औरत ने कुछ
बोल दिया होगा।’’
जोशी जी ने मामले की गंम्भीरता को समझते हुए कहा कि, ‘‘ बस। इतनी
सी बात की खातिर भाभी के गौरे-गौरे गालों पर खिंचवा आ गया। अब भाई!
मैं तो नौकरी दिला सकता था सो दिला दी, कल से भेज देना पंकज को
ड्यूटी पर।’’
इसके बाद घर व गांव में पंकज को लेकर जो प्रशंसा के पुल
बांधे गये, उनको मैं कहानी में नहीं लिख सकता क्योंकि उस प्रशंसा में मुझे
हमेशा एक बनावट नज़र आती है।
अब सब कुछ बदल गया था, पंकज की शादी बड़ी धूमधाम से हुई और
जोशी जी ने भी चोटी बांधना शुरू कर दिया था। सब कुछ ठीक ठाक चल
रहा था कि एक दिन अचानक लोगों ने देखा कि जोशी जी की चोटी उखड़ी
हुई। जी हां! पंकज को पता चल गया था कि जोशी जी ने धोखे से उसे
नौकरी लगाया है और उसकी जात बदल दी गई है। कोर्ट में जोशी के
खिलाफ केस दायर भी पंकज ने किया, जिसका गवाह व मुजरिम का वह
खुद ही था लेकिन उसने सच्चाई को कबूल किया। उसे बाद मैं आज तक
पंकज से नहीं मिला, हां सुना जरूर है कि उसकी बीवी उसे छोड़ गयी है।
जोशी जा को एक दिन देखा था वो अब रिटायर हो गये है और अखिल
भारतीय आरक्षण विरोधी मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष है, बिना चोटी के।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें